पहले बनी डिस्पेन्सरी के बाद डिस्ट्रिक्ट हास्पिटल अब मेडिकल कॉलेज में हुआ तब्दील
1921 ई में दुनिया को अलविदा कहने के बाद भी संस्थापक की लहरा रही यश कीर्ति पताखा मुनाफा ही वारिस अपने उपयोग में ला सकते थे, रियासत की भूमि को वे बेंच नहीं सकते थे
प्रतापगढ़। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के एक डाक्टर एंव दो नर्स के स्टाफ से 123 साल पहले शुरू हुई अंग्रेजी डिस्पेन्सरी बाद में डिस्ट्रिक्ट हास्पिटल से अब राज्य मेडिकल कॉलेज, प्रतापगढ़ के रुप में तब्दील हो चुका है। जहाँ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1 जून को प्राचार्य सहित 9 मेडिकल असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के साथ ही कार्यरत हो गया। अंग्रेजी शासक एवं गवर्नर द्वारा परताबगढ किला के राजा प्रताप बहादुर सिंह जी को दवामी राजा की पदवी मिली थी। इसी बात से प्रसन्न होकर उसी वर्ष 8-4-1898 ई० को उन्होंने अंग्रेजी दवाओं की पहली डिस्पेन्सरी का शिलान्यास डिस्ट्रिक्ट हेड क्वार्टर पर किया। बाद में उसी के बगल लेडीजोंके लिए 1901 में रानी रघुराजि कुंवरि लेडी डफरिन हास्पिटल का निर्माण राजा प्रताप बहादुर सिंह जी ने कराया। राजा साहब ने धर्मार्थ एंव जनहित के कार्यों के लिए बडे बडे ट्स्ट गठित कराये थे। अस्पताल के खर्च के लिए बने वक्फ बोर्ड से, जिसमें साढ़े तिरपन हजार रुपये की निकासी के कई गांवों को शामिल किया गया था। प्रतापगढ़ किला, राज द्वार , संस्कृत पाठशाला, राजा प्रताप बहादुर पार्क, हास्पिटल एंव क्लीनिक, पूर्वजों के स्मारक, चैरा, आधा दर्जन बाग और हादीहाल के साथ ही वक्फ की गई 27 सम्पत्तियों के प्रबन्ध के लिए एक कमेटी का गठन किया गया, जिसमें डिप्टी कमिश्नर परताबगढ उसके प्रेसीडेन्ट और राजा साहब, प्रतापगढ़ उसके वाइस प्रेसीडेन्ट को मिलाकर कुल 12 मेम्बर मनोनीत किये गए थे। बेल्हा शहर में जनाना अस्पताल एवं मर्दाना हास्पिटल के साथ ही जिले भर में उन्होंने सात अस्पतालों – विश्वनाथ गंज, टाउन हास्पिटल, रानीगंज, सुखपाल नगर, कटरा गुलाब सिंह और बेली डिस्पेन्सरी का निर्माण राजा प्रताप बहादुर सिंह ने कराया। तिमारदारों की सुविधा के लिए हास्पिटल के सामने राजा प्रताप बहादुर पार्क और पश्चिमी दिशा में 30 फिट गहरान का पक्का तालाब भी बनवाया था। जिसकी देखभाल एंव सहायता राजा साहब जीवन पर्यन्त 1921 ई० तक करते रहे।