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मानव प्रेम में मर्यादा, भक्ति, त्याग, समर्पण की महत्ता होनी चाहिये जगतगुरु रामानंदाचार्य श्री वल्लभाचार्य

प्रतापगढ़। श्रीराम कथा सत्संग समिति अष्टभुजा नगर द्वारा आयोजित सप्तम दिवसीय कथा में अयोध्या से पधारे संत जगतगुरु श्री रामानंदाचार्य श्री बल्लभाचार्य स्वामी ने आज अंतिम दिन की कथा में कहा कि तुलसीदास जी ने भगवान राम ने शबरी के आश्रम में उसके भाव विव्हल प्रेम के संदर्भ में नवधा भक्ति को निरुपित करते हुए कहा है कि भारतीय धर्मग्रंथों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं। भक्ति के इनको ही नवधा भक्ति कहते हैं।  और हमारे जीवन में इनका सामयिक महत्व है। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्। स्वामी श्री वल्लभाचार्य जी ने इनका उल्लेख करते हुये इनका विवरण किया, ये हैं श्रवण,कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन। ईश्वर के चरित, उनकी लीला कथा, शक्ति, स्रोत इत्यादि को श्रद्धा सहित प्रतिदिन सुनना और प्रभु में लीन रहना श्रवण भक्ति कहलाता है।भगवान की महिमा का भजन करना, उत्साह के साथ उनके पराक्रम को याद करना और उन्हें वंदन करना ही भक्ति का कीर्तन स्वरूप है। शुद्ध मन से भगवान का प्रतिदिन स्मरण करना, उनकी कृपा के लिए उन्हें धन्यवाद करते रहना और मन ही मन उनके नाम का जप करते रहना स्मरण भक्ति कहलाता है। स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना। जीवन की नैया और अच्छे-बुरे कर्मों के साथ उनकी शरण में जाना ही पाद सेवन कहलाता है। मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर की पूजा करना अर्चन कहलाता है। भगवान की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजन के बाद उन्हें प्रणाम करना वंदन कहलाता है। इसमें भगवान के साथ माता-पिता, आचार्य, ब्राह्मण, गुरुजन का आदर-सत्कार करना और उनकी सेवा करना भी है। ईश्वर को स्वामी मानकर और स्वयं को उनका दास समझकर परम श्रद्धा के साथ प्रतिदिन भगवान की सेवा एक सेवक की तरह करना दास्य भक्ति कहलाता है। ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पित कर देना और सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना ही सख्य भक्ति है। अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पित कर देना और अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता न रखना ही भक्ति की आत्मनिवदेन अवस्था है। यही भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं। रामकथा के अन्तिम दिन जगत गुरु द्वारा समिति के पदाधिकारियों को अंगवस्त्र देकर सम्मान दिया गया। इस अवसर पर सैकड़ों भक्तों के साथ सुख देव तिवारी, सदाशिव पांडेय, शिशिर खरे, रवींद्र कुमार रावत, पुश्पेन्द्र मिश्र, जनमेजय सिंह, मृत्युन्जय सिंह, किरण कुमार तिवारी, ब्रिजेश प्रताप सिंह, राजीव तिवारी, राम मनी पांडे, अनूप श्रीवास्तव, अलोक सिंह, शरद केसरवानी, उमेश चंद्र द्विवेदी, सन्तोष मिश्र, नारायण सेवा संस्थान के सहयोगी, रवि शंकर दुबे, उत्कर्ष, सरोज पांडेय, अभय सिंह, राजेश मिश्र आदि सहित अनेकों भक्तों एवं श्रोताओं की उपस्थित ने वातावरण को भक्तिमय और आध्यात्मिक बना दिया है। समापन के अंत में विशाल भंडारे का भी आयोजन किया गया है। उल्लेखनीय बात यह भी रही कि आयोजकों ने कोविड के नियमों के पालन में भी सतर्कता बरती। क्षेत्र में अष्टभुजा नगर रामकथा सत्संग समिति के इस 16वीं सफल आयोजन की चर्चा रही।

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