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महाअष्टमी पर शक्ति की प्रतीक मां गौरी की हुई पूजा भक्तो ने कन्याओ को कराया भोज

प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। वासंतिक नवरात्र की महाअष्टमी पर मंगलवार को भक्तो ने सामूहिक एकता और शक्ति की प्रतीक मां गौरी की पूजा पूरी आस्था एवं श्रद्धा के साथ किया। लोगो ने कोरोना संकट के कारण जहां घरो में ही पूजन अर्चन किया। वही कुछ लोगो ने मां बेल्हा देवी समेत जिले के अन्य मंदिरो में भी पहुंचकर मां को मत्था टेका। भक्तो के जयकारो से मंदिर परिसर गुंजायमान होता रहा। इसके अलावा भक्तो ने कन्याओं को भोज भी कराया। साथ ही उन्हे दक्षिणा आदि देकर विदा किया। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के स्वरूप में चतुर्दिक कल्याण करने वाली देवी मां शेरावाली के आठवे स्वरूप मां गौरी की पूरे विधि विधान के साथ पूजा की गई। मां बेल्हा देवी धाम में भी सुबह से ही भक्त पहुंचने लगे। भक्तो ने पूरी श्रद्धा के साथ मां का पूजन अर्चन किया। साथ ही कुछ भक्तो ने कन्याओ को भोज कराकर पुण्य अर्जित किया। मां दुर्गा जी की आठवी शक्तिका नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुंद के फूल से की गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी जाती है। इनके आभूषण आदि भी श्वेत है। इनकी चार भुजाएं है। इनका वाहन वृषभ है। इनका दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। उपर वाले बांये हाथ में डमरू और नीचे के बांये हाथ में वर मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। अपने पार्वती रूप में इन्होने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार भी इन्होने भगवान शिव के वरण के लिए संकल्प लिया था। इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा जी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के सामान अत्यंत कान्तिमान गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। नवरात्र में आठवे दिन महागौरी के उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोद्य और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तो के सभी पाल धुल जाते है। उनके पूर्व संचित पाप नष्ट हो जाते है। भविष्य में पाप, संताप, दैन्य दुख उसके पास कभी नहीं आते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अभय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। मां महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन, आराधना भक्तो के लिए कल्याणकारी है। हमे सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियो की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। यह भक्तो का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते है। पुराणो में इनकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। हमे प्रवृत्ति भाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।

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