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मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा से बालक का सर्वांगीण विकास सम्भव डा०विनोद

बेलखरनाथ,प्रतापगढ । शिक्षक सेवानिवृत्त के बाद शिक्षक को स्वाध्याय पर विशेष बल देना चाहिए , क्योंकि पठन-पाठन और चिंतन मनन के सहारे ही मनुष्य ज्ञान को आत्मसात करता है ।प्राथमिक शिक्षा में हमें मातृ भाषा का पक्षधर होना चाहिए और देश के कामकाज के लिए अपनी ही भाषाओं का प्रयोग करना चाहिए। नयी शिक्षा नीति में जिसे व्यवहारिक एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान दोनों ही दृष्टि से आवश्यक बताया गया है। यह विचार वि० शिक्षक संघ जिलाध्यक्ष डा०विनोद त्रिपाठी ने सेवानिवृत्त शिक्षक सम्मान के अवसर पर ग्राम श्रीनाथपुर में ब्यक्त किया।  बता दे कि शैक्षिक सत्र 2020-2021 के समापन पर ब्लॉक बेलखरनाथ धाम के पूर्व मा०विघालय आसलपुर के प्रधानाध्यापक श्री शंकर दत्त त्रिपाठी जी और पूमावि० शेखनपुर के हेडमास्टर श्री दुर्गा प्रसाद वर्मा जी रिटायर हुए हैं। आदर्श और अनुकरणीय वरिष्ठ शिक्षकों को उनके आवास पर पहुँच कर शिक्षकों ने माल्यार्पण एवं अंगवस्त्र भेटकर सम्मानित किया। इस मौके पर सेवानिवृत्त शिक्षक शंकर दत्त त्रिपाठी जी ने कहा कि शिक्षा का अर्थ अक्षर ज्ञान होने के साथ ही लोगों को लिखना पढ़ना और हिसाब करना सिखाना बुनियादी या प्राथमिक शिक्षा का लाती है । प्राचीन काल की शिक्षा में नीति को शिक्षा में पहला स्थान दिया जाता था । वरिष्ठ शिक्षक दुर्गा प्रसाद वर्मा जी ने कहा कि हमें अपनी ही भाषा में शिक्षा लेनी चाहिए , हमें लाजमी तालीम पर जोर देना चाहिए ,जिसे नई शिक्षा नीति में कौशल विकास के तौर पर जाना जाता है। विशिष्ट शिक्षक पूर्व जिलाध्यक्ष सर्वेश त्रिपाठी ने कहा कि सन 1921 में महाराजा गायकवाड ने अपने राज्य में लाजिमी तालीम (शिक्षा) शुरू की थी जिसमें सबको शिक्षा देने की बात सर्वप्रथम कही गयी थी । उत्तर प्रदेश में जो सन 2011 में निरू शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार के तौर पर आई है। इस मौके पर विघानन्द मिश्र, अनिल यादव,राम यश विश्वकर्मा, रामजी वर्मा और विजय शंकर गुप्ता आदि ने सेवानिवृत्त शिक्षकों के मार्गदर्शन को अनुकरणीय बताया है।

 

 

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