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स्टेशन पर मारपीट, पुलिस ने चालकों को भगाया दो सवारी वाहन चालकों के बीच जमकर हुई मारपीट

कोरोना काल में अवैध वाहनों का अड्डा बना रेलवे परिसर

प्रतापगढ़। रेलवे परिसर में बुधवार की दोपहर सवारी वाहनों के दो ड्राइवरों के बीच जमकर मारपीट हुई। सूचना पर पहुंची जीआरपी ने यह कहकर किसी भी कार्यवाई से इंकार कर दिया कि घटना स्थल उनके इलाके में नहीं आता है। हालांकि डंडा पटक कर सभी को खदेड़ अवश्य दिया। ताकि दुबारा जमघट न लगे। कोरोना काल में कर्फ्यू लगा है। बाहर निकलने पर पाबंदी है। लॉक डॉउन को धत्ता बताकर पचास से साठ की संख्या में टेम्पों, ई रिक्शा, मैजिक और बुलेरो जैसे सवारी वाहनों का भारी जमावड़ा स्टेशन पोर्टिको के सामने डेली लगा रहता है। सूत्रों के अनुसार अड्डे पर दिन भर गाली गलौज, मारपीट होता है। जुआ होता है। शराब भी पी जाती है। सवाल यह है कि ट्रेन गिनती की चल रही है। सवारी वाहन कई गुना किसकी अनुमति से खड़े होते हैं। इनके पास रेलवे का पंजीकरण भी नहीं है। जिससे राजस्व का भारी नुकसान भी हो रहा है। परमिशन है या नहीं इस बारे में जीआरपी न ही आरपीएफ पूछती है। रेलवे कामर्शियल विभाग के कर्मचारी भी अवैध वाहन अड्डा से आंख मूंद लिए है। रहा है। कोरोना की आड़ में महज फर्जी आंकड़ों की बाजीगरी में बिजी है। तीन सीएमआई यहां पोस्ट है। उनको क्या गरज पड़ी है। जीआरपी यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है कि विधिक कार्यवाई के लिये सर्कुलेटिंग एरिया उसका नहीं है। लेकिन आरपीएफ की तो पूरी रेल ही संपत्ति है। राजस्व का लास हो रहा है तो आरपीएफ भी उतनी ही जिम्मेदारी है जितना कामर्शियल के कर्मचारी। उधर, वाहन चालकों का कहना है कि वे गाहे बगाहे जीआरपी और आरपीएफ की बेगारी भी करती हैं। इसलिए पुलिस वाले कुछ बोलते नहीं हैं। बात कुछ भी हो परिसर में मारपीट को रोकने और अवैध वाहन अड्डे के खिलाफ कार्यवाई होनी चाहिये। शांतिकायम रहे मुसाफिरों में किसी बात को लेकर भय व्याप्त न होने पाये। राजस्व भी बढ़े इन सबकी जिम्मेदारी रेलवे और उसके मातहतों की है। एसएस अनिल दुबे का कहना है कि जिन वाहनों का पंजीयन नहीं हैं। उन्हें बाहर किया जायेगा। आरपीएफ को निर्देशित किया कि इस मामले को देखे।

 

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