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अब भी न संभले तो जूझना होगा पानी के लिए

शादी के पहले कुंए की तो शादी के बाद पोखरे के पूजन की थी परम्परा

प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। हम पानी को लेकर क्या अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त है। यदि इसका जवाब हां में है तो शायद हम लोग गलतफहमी का शिकार है। जिस प्रकार प्राकृतिक जल श्रोतो को हम लोग उन्मुक्त तरीके से बर्बाद कर रहे है, उससे तो यही जाहिर होता है कि आने वाले दिनो में हमारा भविष्य एक बूंद पानी के लिए भटकता फिरेगा। बताते चले कि करीब तीन दशक पहले प्राकृतिक जल श्रोतो को बकायदा संरक्षित करने के लिए उनकी पूजा अर्चना तक की जाती थी। मिसाल के तौर पर शादी विवाह में कुंए एवं तालाब पोखरो का खास स्थान होता था। शादी से पहले कुंए की तो शादी के बाद पोखरे के पूजन की परम्परा थी। इस परम्परा का कारण शायद जल का संरक्षण करना रहा होगा। वही जब विकास की दौड़ में शामिल हुए और परम्परा का निर्वहन सिर्फ रस्म निभाने तक होता गया। वैसे वैसे कुंए, तालाब एवं पोखरो का अस्तित्व भी समाप्त होने लगा। प्राकृतिक जल संरक्षण के श्रोतो केइस तरह समाप्त होने से जो नुकसान हुआ, उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तीन दशक पूर्व जनपद में 30 से 40 फिट की बोरिंग से ही पानी निकल आता था। जो धीरे धीरे बढ़ता गया। आज हालत यह है कि 200 से 300 फिट बोरिंग के बाद पानी निकलता है। गिरता भूजल स्तर इस बात का परिचायक है कि प्राकृतिक जल संरक्षण के श्रोत यदि ऐसे ही समाप्त होते रहे तो यह अंतर और बढ़ता जाएगा। यदि मौजूदा हालत पर गौर करे तो पता चलता है कि कुंए तो लगभग 95 प्रतिशत तक समाप्त हो चुके है। जो कुंए बचे भी है वे भी समाप्त होने के कगार पर है। यही हाल तालाब एवं पोखरो का है। अब तालाब एवं पोखरे भी बहुत ही कम बचे है। कारण या तो इनको मिट्टी से पाटकर इन पर अतिक्रमण कर लिया गया है या फिर इनको कूड़ेदान की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। खास बात यह है कि प्राकृतिक रूप से विकसित हुए तालाब व पोखरो में हमेशा पानी बना रहता थ। यहां तक कि गर्मी में भी यह कम ही सूखते थे। इसके बारे में भूगर्भ जल वैज्ञानिको का कहना है कि पृथ्वी के अंदर दबाव के चलते पानी के श्रोत अपने आप ही फूट पड़ते थे। जो प्राकृतिक तौर पर विकसित तालाब व पोखरे होते थे। उल्लेखनीय है कि उधर कुछ वर्षो से मनरेगा के तहत तालाब खुदवाए गए और उसमें पानी भी भरवाया गया परन्तु समय के साथ वे भी सूख गए। बहरहाल जिस तरह से प्राकृतिक जल संरक्षण के श्रोतो को समाप्त किया जा रहा है वह भविष्य में कष्टदायी ही नहीं घातक भी साबित होगा। जबकि प्राकृतिक जल संरक्षण श्रोत को संरक्षित करने के लिए उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि यदि कोई व्यक्ति प्राकृतिक जल संरक्षण के श्रोत पर अतिक्रमण करता है या उसके स्वरूप से छेड़छाड़ करता है तो उसे मूल स्वरूप मंे लाया जाय तथा उसका खर्च अतिक्रमणकारी से वसूल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के अनुपालन में शासनादेश भी जारी किया गया किन्तु इसका कितना पालन हुआ इसे समाप्त होते प्राकृतिक जल संरक्षण के श्रोतो से जाना जा सकता है।

 

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