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रोजा रखने से मनुष्य के विकारो का होता है विनाश रमजान पर विशेष

प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। शरीर की आत्मा को खुदा से मिलाने वाली इबादत रोजा है। रोजा रखने से मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकारो का नाश होता है। इसके अलावा बुराई के रास्ते पर चलने वालो को सच्चाई का मार्ग भी दिखता है। रमजान के पाक महीने में रोजा रखने वाला इंसान कई गुना पुण्य का भागीदार होता है। बताते है कि रोजा न रखने वाले इंसान को वह फल नहीं मिल पाता है। रमजान के महीने में ही कुरान पाक का लेखन कार्य पूरा हुआ था। इसीलिए यह महीना बड़ा ही पाक महीना माना जाता है। ऐसे मे खुदा अपने बंदे पर मेहरबान होता है। बशर्ते वह बंदा उस खुदा परवर दिगार के बताए हुए रास्ते पर चलकर भलाई का काम करे। रमजान के पाक महीने में नमाज पढ़ने से पहले बजू व तराबीह का अपना महत्व होता है। नमाज पढ़ने से पहले बजू बनाने की क्रिया का आध्यात्मिक महत्व यह है कि नमाज के वक्त शरीर पूर्ण रूप से स्वच्छ रहता है। ऐसी दशा में यदि आपका मन किन्ही कारणो से खिन्न हो गया तो दुबारा पानी लेकर वजू बनानी चाहिए। हाथो व पैरो को पानी से धोने के बाद कुल्ली आदि के बाद आप स्वच्छ हो जाते है। साथ ही नमाज पढ़ सकते है। वजू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्व है। इस क्रिया से हाथ पैर व मुंह की गंदगी साफ हो जाती है। आप तरोताजा हो जाते है। हाथ में पानी लेकर उसे नाक से खीचने की क्रिया से न केवल गंदगी साफ होती है बल्कि उससे शुद्ध वायु का प्रवेश भी शरीर में होता है। तराबीह की नमाज दो घण्टे मस्जिदो में पढ़ाई जाती है। इस दौरान कुरान शरीफ में उल्लेख की गई धार्मिक बातो को पढ़कर उसे वास्तविक जीवन में अमल करने का संकल्प लिया जाता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी फायदेमंद है। तराबीह पढ़ने के दौरान बार बार सिजदा करने व उठने की क्रिया से शरीर की कसरत भी हो जाती है। इस दौरान रोजा खोलने के बाद जो कुछ खाया पिया जाता है वह भी हजम हो जाता है। यही कारण है कि अधिकांश मुसलमान भाई रोजा रखकर अपने मजहब के वसूलो पर खरा उतरने का प्रयास करते है।

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