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महंगाई से दीपावली त्योहार की रंगत फीकी

पुताई के बजाय लोग कर रहे घरो की सफाई
प्रतापगढ़ (ब्यूरो) रोशनी का पर्व दीपावली धीरे धीरे नजदीक आता जा रहा है। इसके बावजूद त्योहार की रौनक दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। महंगाई और गरीबी ने दीपावली का त्योहार फीका कर दिया है। भूख मिटाने के लिए संघर्ष कर रहे लोग अपने घरो की पुताई भी नहीं करा पा रहे है। पिछले साल की तरह इस साल भी रोशनी का त्योहार जनपद वासी कंगाली में मनाने को मजबूर है।
प्रकाश पर्व दीपावली लोगो के लिए बड़ी उम्मीदे लेकर आता है। वही जेब ढीली होने के कारण लोग पहले की तरह त्योहार नहीं मना पा रहे है। यही वजह है कि अभी बाजारो में सन्नाटा पसरा हुआ है। गरीबी से जूझ रहे लोगो ने तो बाजार जाना ही छोड़ दिया है। जबकि पहले इन दिनो बाजार ग्राहको से भरे रहते थे। वही इस साल चहल पहल गायब है। महंगाई की मार के कारण छोटी छोटी खरीददारी करने की सामथ्र्य भी लोगो में नहीं है। कोरोना महामारी तथा महंगाई ने लोगो की कमर तोड़ दिया है। धनतेरस त्योहार आने को है। इसे लेकर दुकानदार भले ही बड़ी बिकवाली की आस लगाए है। लेकिन महंगाई के कारण उनकी उम्मीद पूरी होने की उम्मीद नहीं दिख रही है। बाजारो में सोने चांदी के आभूषण, स्टील, पीतल आदि के बर्तन इलेक्ट्रानिक सामग्री आदि भरी पड़ी है। ग्राहको को लुभाने के लिए भरपूर इंतजाम किए जा रहे है। उधर ग्राहको में अभी खरीददारी के प्रति उदासीनता बनी हुई है। उधर औपचारिकता निभाने के लिए शहर कस्बाई इलाको में लोग घरो की रंगाई पुताई में जुटे है। बड़ी मुश्किल से त्योहार को रौनकदार बनाने की कोशिश हो रहीं है। लगातार बढ़ती महंगाई के कारण जिले की आर्थिक रीढ़ पूरी तरह से टूट चुकी है। किसान के पास लक्ष्मी का अभाव बना हुआ है। जबकि जिले की अर्थव्यवस्था किसान के ही पैसे आगे बढ़ती है। जब किसान के घर अनाज से भर जाते है तब अनायास ही बाजार की रौनक बढ़ जाती है। लेकिन महंगाई के कारण परेशान किसान दो वक्त की रोटी की व्यवस्था के लिए जद्दोजहद कर रहे है। ऐसी हालत में दीपावली त्योहार की दस्तक उनके मुरझाए चेहरो पर रौनक नहीं बिखेर पा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि भले ही सर्वत्र कंगाली फैली हो लेकिन जुआरियो के हौसले कभी कम नहीं होते है। दीपावली करीब आते ही जुआरियो में जोश का संचार हो जाता है। इन दिनो नगर से लेकर गांवो की पगडंडियो तक जुआरियो की जमात बाजिया लगाकर त्योहार का शगुन मनाने में व्यस्त है। समाज में घुल चुके जुए, सट्टे, के कारोबार पर अंकुश लगा पाने में पुलिस असमर्थ दिख रही है। नगर में ही अनेक स्थानो पर जुआ एवं सट्टे का कारोबार धड़ल्ले के साथ चल रहा है। यदि यही हालत रही तो आने वाले समय में दीपावली का त्योहार केवल व्यसनो का पर्व बनकर रह जाएगा।

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