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प्रेममयी, करुणामयी व दिव्य प्रेम साधना ही मोक्ष के द्वार तक पहुंचाती है- पंडित करुणा शंकर द्विवेदी

प्रतापगढ़। श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिवस पर कथा व्यास पंडित करुणा शंकर द्विवेदी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला व रासलीला पर सविस्तार व्याख्यान किया।  इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण बाल लीला काल में ही मुस्कराकर मृत्यु कारक समस्याओं का समाधान कर लेना,उनके साहस और दिव्य प्रेम का प्रतीक है, और यही दिव्य प्रेम आत्मशक्ति का साधन बनता है।  आत्मबल के आधार पर ईश्वर प्राप्ति के लिए मार्ग में आने वाली सारी बाधाएं स्वतः दूर हो जाती हैं, क्योंकि उनको दूर करने का दायित्व प्रभु के ऊपर होता है, और मेरे दायित्व में सिर्फ मेरा निजी प्रयास होता है। सार्वजनिक जीवन के मूल मंत्रों पर प्रकाश डालते हुए कथा व्यास पंडित करुणा शंकर द्विवेदी ने कहा कि प्रेम अभाव की भक्ति, प्रेम रहित उपासना कभी भी लक्ष्य की प्राप्ति का साधन नहीं बन सकती है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए अर्थात मोक्ष के लिए प्रेम आश्रय, प्रेममयी, करुणामयी साधना का आधार ही हमें मोक्ष का द्वार दिखाता है, और इसके लिए हम सभी भक्तों को भगवान श्री कृष्ण के बाल लीला, रासलीला और कल्याणकारी कृतियों को अनुसरण करना चाहिए जो श्रीमद् भागवत कथा का सार है। श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस पर मुख्य कथा श्रोताओं में विकास श्रीवास्तव, जीवेश श्रीवास्तव, आर.पी  मिश्रा, धीरेंद्र गौतम, सत्येंद्र तिवारी, दिवाकर त्रिपाठी, ओम शुक्ला व मुख्य यजमान विंध्यवासिनी प्रसाद श्रीवास्तव, अर्चना श्रीवास्तव, सूर्य प्रकाश श्रीवास्तव, पूर्णिमा श्रीवास्तव, अरुण कुमार श्रीवास्तव, किरण श्रीवास्तव, हिमांशु प्रकाश श्रीवास्तव, व गौरव श्रीवास्तव समेत तमाम भक्तजन उपस्थित रहे।
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