दीपावली की तैयारी में कुम्हारो के घूमने लगे चाक
गणेश लक्ष्मी की मूर्ति बनाने में जुटे कुम्हार
प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रो में दीपावली पर्व की तैयारी जोरो पर चल रही है। मूर्ति कलाकार मिट्टी की लक्ष्मी, गणेश की प्रतिमा बनाने में जुट गए है। इस कार्य में कुम्हार जाति के लोग परिवार समेत जुटे हुए है। ज्योति पर्व दीपावली के आगमन में अब चन्द रोज ही बाकी है। इस कम समय में हर व्यक्ति दीपावली की खुशियां बटोरने मंे पूरे मन से लगा हुआ है। दीपावली की तैयारी में अब कुम्हारो के चाक अब चल ही नहीं बल्कि तेजी से घूमने लगे है। इस कार्य में परिवार के बच्चो से लेकर महिलाएं तक लगी है। मिट्टी की कलाकृतियां बनाने वाले कुम्हार का हाथ लगातार अपने चाक पर उंगलियो के इशारे पर दीया का निर्माण तेजी के साथ कर रहे है। यही नही दीपावली पर गणेश लक्ष्मी के पूजन की परम्परा होने के कारण सांचे में मिट्टी को ढालकर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा का निर्माण तेजी के साथ कर रहे है। इस कार्य में कुम्हारो का सहयोग करते उनके परिजन भी नजर आ रहे है। अपेक्षित ढलाई पूरी होने पर आंवे की आग धुंए के साथ उठने लगती है। गांव से लेकर शहर की गलियो में भी निर्माण कार्य तेजी के साथ चल रहा है। मिट्टी के दीपक बनाने वाले भी तेजी के साथ जुटे हुए है। हालांकि अब यह भी सस्ता नहीं रहा। मिट्टी की कुटाई से लेकर उसे ले आने में समय के साथ होने वाले खर्च के कारण महंगाई का प्रभाव मिट्टी की कला पर भी साफ नजर आ रहा है। दीया, घरिया, घण्टी हर चीज का दाम अब महंगाई के कारण बढ़ गया है। इसकी लागत बढ़ने के कारण कलाकार महंगे दामो में बेचने को मजबूर है। मिट्टी के साथ ही अब दूसरे जनपद से आने वाली प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियां भी अब जिले में बनने लगी है। दीपावली से पूर्व घर व दुकान की साफ सफाई की भी परम्परा है। यह कार्य भी अब शुरू हो चुका है। कुम्हारो का कहना है कि अब महंगी मिट्टी खरीदकर बर्तन बनाना पड़ रहा है। इसके बावजूद वे महंगे दामो में इसे बेच भी नहीं सकते है। ऐसी स्थिति में मेहनत का लाभ नहीं मिल पा रहा है। हालांकि अब आकर्षक झालर व मोमबत्ती का प्रचलन बढ़ जाने के बावजूद दीपावली पर मिट्टी के दीये में तेल का दीपक जलाने का अपना अलग महत्व है। मिट्टी का दीया जलाने से वातावरण की अशुद्धि दूर होती है। साथ ही कीट पतंगे भी खत्म हो जाते है।