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अखण्ड सौभाग्य के लिए किया वट साबित्री पूजन

जौनपुर। वट सावित्री का पर्व जिले में आस्था और विश्वास के साथ मनाया गया।   हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिनें अपने अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं। इस पर्व के अवसर पर महिलाओं ने अनेक वट वृ़क्ष के समक्ष सामूहिक रूप से विधि विधान के साथ पूजन किया। इस पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, फूल धूप तथा भिगोया हुआ चना इस्तेमाल करना लाभदायक है। पूजन में वटवृक्ष के चारों और कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा किया जाता है। इतना करने के बाद बड़ के पत्तों से गहने बनाकर और उन्हें पहनकर वट सावित्री की कथा सुना जाता है। तत्पश्चात रुपए रखकर सासु के चरण स्पर्श किया जाता है । वट सावित्री पूजा के बाद प्रतिदिन कुमकुम और सिंदूर से सौभाग्यवती स्त्रियों की पूजा होती है। पूजा संपन्न होने के बाद बांस के पात्र में वस्त्र और फल रखकर ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। दरअसल, देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को मृत्यु के मुंह से बचाया था. ऐसी मान्यता है कि राजा अश्वपति की बेटी सावित्री की शादी राजकुमार सत्यवान से हुई थी. एक दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए हुए थे. काम करते समय उनका सिर घूमने लगा और वे यम को प्यारे हो गए. जिसके बाद सावित्री ने पति को दोबारा जीवित करने की ठान ली। उन्होंने यमराज से गुहार लगाई. वट के वृक्ष के नीचे बैठ कर कठोर तपस्या की. कहा जाता है कि इस दौरान सावित्री पति की आत्मा के पीछे भगवान यम के आवास तक पहुंच गयी. अंत में उनकी श्रद्धा की जीत हुई. यमराज ने सत्यवान की आत्मा को लौटाने का फैसला किया। जिसके बाद से महिलाएं इस दिन पति की आयु के लिए व्रत रखती हैं।

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