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मुश्किल घड़ी में अपनों से दूर मातृत्व सुरक्षा का फर्ज निभाती नर्सें

सुल्तानपुर। महामारी के इस दौर में मुँह पर चढ़ा मास्क जब बार-बार नाक से नीचे आने की जद्दोजहद में लगा हो और पुलिसिया डर से राह चलते लोगों की नाक पर मजबूरी में चढ़ जाता हो, ऐसे हालात में घंटों मास्क और पीपीई किट पहने दिन रात प्रसूताओं की देखभाल में लगीं नर्से वास्तव में धरती के भगवान से कम नहीं हैं।
निडर होकर देती हैं स्वास्थ्य सेवाएं- 
महामारी की इस मुश्किल घड़ी में प्रसव कक्ष में गूंजती किलकारियों के पीछे नर्सों की मेहनत की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती । वह भी महामारी के ऐसे हालात में जब कोरोना संक्रमित के अपने भी नजदीक आने से डरते हों और दाह संस्कार की रस्म निभाने के लिए पड़ोसियों के कंधे मजबूर हों। ऐसे में चिकित्सा विभाग के लोग ही हर किसी के लिए भगवान बनकर आ खड़े हुए हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अखण्डनगर के प्रसव कक्ष में कार्यरत नर्स मेंटर प्रिया चौधरी बताती हैं कि कभी-कभी इतना भी समय नही होता कि गर्भवती महिला की कोरोना जांच करवाकर फिर उसे छुएं, हमें तुरंत उनका इलाज करना पड़ता है।  प्रसव और मातृत्व सेवाओं की ड्यूटी ही ऐसी है कि इसमें विलंब नहीं किया जा सकता, बस इसे करना ही होता है, इतना ही नहीं हम डर के कारण इसे मना भी नहीं कर सकते। इससे मां और बच्चे की जान जोखिम में हो सकती है।
पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकीं —
प्रसव कक्ष में मौजूद उन तमाम नर्सों की अपनी भी कई मजबूरियां हैं। कोई महीनों से अपने परिवार से दूर है, तो कोई अपने पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाईं।  स्वास्थ्य केंद्र अखण्डनगर के प्रसव कक्ष में कार्यरत स्टाफ नर्स सुषमा के पिताजी हाल ही में कोरोना की जंग हार गए। लेकिन मजबूरी ऐसी कि सुषमा अपने पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पायीं। 12 घंटे निभाती हैं ड्यूटी –
प्रिया बताती हैं कि स्वास्थ्य केंद्र अखण्डनगर के प्रसव कक्ष में हम दो लोग ही कार्यरत हैं। और बारी बारी से प्रतिदिन 12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है, वहीं यदि मेडिकल इमरजेंसी की वजह से कोई नहीं आता तो 24 घंटे भी काम करना पड़ता है।
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