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ऋषि प्रकाश कौशिक, पुस्तक समीक्षा

डॉ सत्यवान सौरभ का आज के हिंदी लेखकों में प्रमुख स्थान है। ‘तितली है खामोश’ उनका चर्चित दोहा संग्रह है। ये गत 18 वर्षों से लेखन और  संपादन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाओं से देश-विदेशों में लिखे जा रहे साहित्य को एक नया आयाम मिला है। उनकी ताजा कृति ‘प्रज्ञान’ बाल काव्य संग्रह के तुरंत  बाद नव समसामयिक निबंध संग्रह ‘खेती किसानी और पशुपालन’ आया है जो कि देश के किसानों के संघर्ष और वर्तमान दौर में उनसे जुड़ी समस्याओं का एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। ‘खेती किसानी और पशुपालन’ को नोशन प्रकाशन, चेन्नई ने प्रकाशित किया है। कुल 180 पेज की इस पेपरबैक कृति का मूल्य 250रुपए है। पुस्तक का आवरण आकर्षक है। पुस्तक में कुल 50 निबंध हैं। पहला निबंध ‘वन्य जीवों पर मंडराता संकट’ तथा अंतिम निबंध ‘कुदरत को पीर जोशीमठ की तस्वीर’ है।  पहले निबंध में लेखक लिखता है- हाल आज वन और वन्य जीवों का दिख रहा है उससे प्रतीत होता है कि रफ्ता-रफ्ता इंसानों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वनोन्मूलन का कार्य किया है तथा इंसान आधुनिकीकरण की आड़ में वनों और वन्यजीव संरक्षण को विस्मृत करता जा रहा है।  वनों के कटने से यह स्थिति पैदा हो रही है कि हमारे वन्यजीवों को मुनासिब आवास की व्यवस्था भी नहीं है जो उनके लिहाज से उन्हें उपयुक्त सुरक्षा प्रदान कर सके इसलिए हमारी अग्रता वन्यजीवों के लिए उपयुक्त आवास व्यवस्था और वन व वन्यजीव संरक्षण होनी चाहिए क्योंकि यही हमारे जीवन में स्वास्थ्य पर्यावरण के निर्माण के लिए नितांत अत्यावश्यक है।

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