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आदेश के बावजूद एफआईआर न दर्ज होने पर पीड़ित ने फिर ली गई कोर्ट की शरण

27 दिन देरी से दर्ज हुई दरोगा सहित पांच पुलिसकर्मियों पर रिपोर्ट

चित्रकूट। पुलिस का काम अपने तरीके से होता है। चाहे वह कोर्ट का आदेश क्यों न हो। इसकी ताजा उदाहरण माननीय विशेष न्यायाधीश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के आदेश के बावजूद भी एसआई और पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। इस पर पीड़ित ने जरिये अधिवक्ता पुनः कोर्ट की शरण ली। इसके बाद जाकर 27 दिन की देरी से रिपोर्ट दर्ज की गई। पीड़ित के अधिवक्ता राम कृष्ण ने बताया कि अब पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन इस संबंध में कोर्ट को आख्या नहीं दी। अधिवक्ता रामकृष्ण ने बताया कि  कैंप का पुरवा मजरा डिलौरा निवासी प्रेमचंद्र पुत्र स्व. भगवानदीन ने कोतवाली के उप निरीक्षक मुन्नीलाल, कांस्टेबल जयनारायण पटेरिया, राहुल देव, और तीन अज्ञात पुलिसकर्मियों पर आरोप लगाया था कि 25 जुलाई को ये लोग उसके घर पहुंचे और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर इनकाउंटर की धमकी दी। साथ ही पचास हजार रुपये की उगाही का प्रयास किया। न देने पर बंधक बनाकर अपने साथ ले गए और लाकअप में बंद कर दिया। बुरी तरह पीटने से उसका पैर टूट गया। बाद में रिपोर्ट दर्ज न करके उसके भाई राकेशमणि को पीटा और चालान कर दिया। उसने इस संबंध में कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अधिवक्ता ने बताया कि इस पर उन्होंने प्रेमचंद्र की ओर से एससी-एसटी कोर्ट में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के मुकदमा दायर किया था। उन्होंने बताया कि माननीय विशेष न्यायाधीश एससी एसटी कोर्ट ने इस संबंध में 19 अगस्त को आदेश जारी कर कोतवाली प्रभारी को आरोपियों पर रिपोर्ट दर्ज कर तीन दिन के अंदर आख्या प्रस्तुत करने को कहा था। अधिवक्ता रामकृष्ण ने बताया कि आख्या प्रस्तुत करना तो दूर, कोतवाली प्रभारी ने इस संबंध में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की। इस पर उन्होंने प्रेम चंद्र की ओर से 25 अगस्त को फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और रिपोर्ट दर्ज न करने की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने इस पर उसी दिन थाना प्रभारी से आख्या तलब करने का आदेश जारी कर दिए था। अधिवक्ता ने बताया कि इसके बाद ही कोतवाली पुलिस ने 16 सितंबर को सभी आरोपियों पर धारा 452, 323, 504, 506, 342, 325, और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज की है। अधिवक्ता ने बताया कि इस तरह के मामलों से स्वयंसिद्ध हो जाता है कि पुलिस कोर्ट के आदेशों को भी किस तरह से ले रही है।

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