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भव सागर से मुक्ति का प्रखर मार्ग भगवत कथा

श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन राजा परीक्षित का हुआ प्रसंग
बारा, कौशाम्बी। विकासखंड कौशाम्बी के गौरए गांव में संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस की कथा में कथा वाचक सुभाष महाराज ने राजा परीक्षित की कथा का प्रसंग सुनाया। कथा में बताया कि किस तरह कलयुग महराज का प्रवेश हुआ। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि मनुष्य का भव  सागर से मुक्ति का द्वार श्रीमद् भगवत कथा है।  बताया कि राजा परीक्षित एक बार शिकार करने के लिए निकले थे और समीक ऋषि आश्रम पहुंच गए। उस समय राजा परीक्षित प्यास से व्याकुल थ,े ऋषि तपस्या में लीन थे परीक्षित जी ने सोचा की ऋषि अहंकारी है राजा का अपमान कर रहा है उन्होंने आश्रम के पास मृत पड़ा एक सर्प उठाकर समीक ऋषि के गले में डाल दिया। कुछ देर बाद जब उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि आश्रम आए और पिता के गले में मरा हुआ सर्प देखा तो गुस्से में आकर उन्होंने श्राप दिया कि जिसने भी उनके पिता के शरीर में मृत सर्प डाला है एक सप्ताह में उसका अंत सर्प के डसने से होगा। श्राप की जानकारी राजा परीक्षित को हुई तो ऋषि आश्रम जाकर क्षमा मांगा और मुक्ति हेतु गंगा के किनारे जा रहे थे, तभी उनकी मुलाकात सुकदेव जी से हुई, सुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिनों में राजा परीक्षित की मुक्ति हेतु श्रीमद् भागवत की कथा सुनाई। श्रीमद् भागवत कथा मुक्ति का सर्वाेत्तम मार्ग है, कार्यक्रम के मुख्य जजमान रामकिशुन द्विवेदी व कार्यक्रम के आयोजक रमाकांत द्विवेदी व पूर्व प्रधान रामसूरत द्विवेदी गौरए द्वज्ञरा आए हुए सभी भक्तों का स्वागत व आभार प्रकट किया। श्रीमद् भागवत जैसे कथाओं का सभी को कराना चाहिए जिससे सभी लोगों को भक्ति एवं मुक्ति मिलती है।
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