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पांच वक्त की नमाज अता कर रहे रोजेदार

प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। रमजान के महीने में मुस्लिम बाहुल्य बस्तियो में चहल पहल बढ़ गई है। सुबह सहरी के बाद से रात्रि में तराबीह की नमाज तक चहल पहल रहती है। रोजेदार घरो व मस्जिदो में पांचो वक्त की नमाज अता कर रहे है। रमजान के महीने में रोजा रखना फर्ज है। ऐसे में इस्लाम मानने वाले प्रत्येक आकिल बालिग (स्त्री-पुरूष) को इस महीने में रोजा रखना जरूरी है। रमजान महीने में सहरी का अपना अलग महत्व है। सहरी का वक्त रात्रि के द्वितीय पहर में शुरू होकर फज्र की नमाज के वक्त के पहले तक रहता है। इस समय मुस्लिम भाई अगले दिन रोजा रखने की तैयारी में खाते पीते है। इस बारे में पल्टन बाजार निवासी मो. आरिफ उर्फ मिण्टू का कहना है कि हदीश शरीफ में सहरी के बारे में बयान है कि सहरी खाना सुन्नते रसूल सल्लाह वसल्लम है। बरकत है। सहरी आखिरी वक्त में खाना अफजल है। रमजान के महीने में एक विशेष नमाज तराबीह है। इसमें पेश इमाम द्वारा पूरे रमजान के महीने तक कुरान शरीफ पढ़ना तथा सुनना सुन्नत है। प्रतिदिन इशा नमाज के बाद पढ़ी जाने वाली यह विशेष नमाज प्रतिदिन बीस रकआत में अदा की जाती है। इफतार रमजान महीने का महत्वपूर्ण समय होता है। दिन भर रोजा रखने के बाद शाम को सूरज ढलने के बाद रोजेदार अपने घरो में या मस्जिदो में एकत्र होकर मीठी चीज से इफ्तार की दुआ पढ़ने के उपरान्त रोजा खोलते है। इसके बाद मगरिज की नमाज अता करते है। हदीश शरीफ में आयत है कि इफ्तारी दूसरो को कराना बड़े सवाब का काम है। रमजान के महीने में प्रत्येक मुसलमान पर सदका ए फितर फर्ज है। हर मर्द, औरत छोटा, बड़ा गुलाम आजाद यहां तक कि ईद की नमाज के पहले पैदा होेने वाले नवजात शिशु पर सबकी तरफ सेएक यतीम विधवा को दान देना चाहिए। ऐसा हदीश में बयान है।

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