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अब भी मिट्टी के दीये से होती है लक्ष्मी गणेश की पूजा

कुम्हारो ने सहेजी है त्योहार की परम्परा
प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। कार्तिक मास की अमावस्या दीपावली पर लक्ष्मी गणेश की पूजा अब भी मिट्टी के दीये से ही होती है। आकर्षक बिजली की झालरे और मोमबत्तियां भी दीपावली की यह परम्परा मिटा नहीं सकी है। पूजा की यह परम्परा सहेजने का श्रेय कुम्हारो को है। उन्होने अपनी कला से अब भी यह परम्परा सहेज कर रखा है। यही कारण है कि दीपावली का त्योहार नजदीक आने के साथ ही कुम्हार जाति के लोग दीये, दीपो वाली ग्वालिन, मिट्टी के खिलौने मिट्टी की घण्टी आदि बनाने में जुट जाते है। प्रकाश पर्व दीपावली इस साल 4 नवम्बर को है। लक्ष्मी पूजा और आतिशबाजी के इस त्योहार में घरो को रोशन करने की भी परम्परा सदियो से चली आ रही है। समय के साथ भले ही चीन की बनी रंग बिरंगी बिजली की झालरो एवं मोमबत्तियो ने घरो को रोशन करने का जिम्मा ले रखा हो। साथ ही सभी को अपने मोहपाश में बांध लिया है। इतना सब होने के बावजूद अब भी मिट्टी के दियो के बगैर माता लक्ष्मी जी की पूजा नहीं होती है। यह परम्परा बचाए रखने का पूरा श्रेय कुम्हारो को देना होगा। इसीलिए अब भी दीपावली पर्व की सुगबुगाहट के साथ ही कुम्हारो के चाक तेजी के साथ घूमने लगते है। वह मिट्टी के दीये, दीपो वाली ग्वालिन, बच्चे के खिलौने आदि तल्लीनता के साथ बनाने में जुट जाते है। इस कार्य मंे उनका पूरा परिवार सहयोग में लगा रहता है। इस बावत कम्हारो का कहना है कि साल भर भले ही सिर्फ चाय के कुल्हड़ो तक ही उनका व्यवसाय सिमटा रहता है। वही दीपावली के समय अब भी दीयो एवं खिलौनो आदि से अच्छी कमाई कर लेते है। इस मौके पर वह लोग कस्बाई इलाको में भी दुकान लगाकर दीये बेचते है। साथ ही इस काम से फुरसत होने पर किसानी व अन्य काम करते है।

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