भागवत कथा सुनकर परीक्षित हुए जन्म मरण से मुक्त:- कथा व्यास उमापति दास महाराज
प्रतापगढ़। बारघाट प्रतापगढ़ के ग्राम सिधारी पट्टी के कान्हा ट्रेडर्स प्रतिष्ठान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस कथा व्यासपीठ पर विराजमान आचार्य उमापति दास मिश्र महंत श्री राम जानकी मंदिर बाबा घुश्मेश्वर नाथ धाम से आए महाराज ने भागवत कथा का महत्व बताते हुए राजा परीक्षित की कथा की व्याख्या की।उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित शिकार खेलने जाते हैं, उन्हें तेज प्यास लगती है। समीप में स्थित शमीक ऋषि के आश्रम पर पहुंचते हैं। ऋषि समाधिस्थ थे। राजा ने पानी मांगा किंतु कोई उत्तर नहीं मिला। राजा ने क्रोधित होकर पास में पड़े मृत सर्प को ऋषि के गले में डाल दिया। कुछ देर बाद ऋषि पुत्र श्रृंगी ने आकर देखा तो उसने आग बबूला होकर शाप दिया कि जिसने मेरे पिता का अपमान किया है वह आज से सातवें दिन तक्षक द्वारा डस लिया जाएगा। तदंतर शुकदेव जी ने एक सप्ताह तक वहीं रहकर भागवत की कथा का पारायण किया और परीक्षित को जन्म मरण से मुक्त कर दिया। एक दृष्टांत में स्वामी जी ने सत्संग की महिमा का वर्णन किया तथा बताया कि स्वाति नक्षत्र की बूंद जब केले में पड़ती तो कपूर बनती है। सर्प के मुख में पड़ती है विष बन जाती है। वही बूंद जब सीप में गिरती है तो मोती बन जाती है। सृष्टि प्रक्रिया का वर्णन करते हुए बताया कि सृष्टि के पूर्व यह विश्व जल मग्न था। एकमात्र नारायण योग-निद्रा में आसीन थे। उनकी नाभि कमल से ब्रम्हा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रम्हा ने फिर समस्त सृष्टि की उत्पत्ति की। सबसे पहले मनु शतरुपा की उत्पत्ति हुई। बाराह अवतार, जय-विजय को शाप, दक्ष के यज्ञ, विध्वंश, ध्रुव चरित्र का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया। इस मौके पर सुनील त्रिपाठी, आशुतोष त्रिपाठी, शैलेश त्रिपाठी, विवेक, विष्णु, काजल, गार्गी, श्रेया, गुनगुन, माही, आस्था, अंशवर्धन, हर्षवर्धन एवं समस्त त्रिपाठी परिवार शामिल होकर धर्मलाभ उठा रहे हैं। कथा व्यास के सहयोग में आचार्य परमेन्द्र शुक्ला, आचार्य पंकज मिश्र, आचार्य श्रीकांत पांडेय व पंडित उपेन्द्र मिश्र रहे।